गुज़र रहे हैं शब् ओ रोज़ नहीं आतीं
रियाज़ ए ज़ीस्त है आज़ुर्दा ए बहार अभी
मेरे ख्याल की दुनिया है सोगवार अभी
जो हसरतें तेरे ग़म की कफ़ील हैं प्यारी
अभी तलक मेरी तन्हाईयों में बस्ती हैं
तवील रातें अभी तक तवील हैं प्यारी
उदास आँखें, अभी इंतज़ार करती हैं,
बहार हुस्न यह पाबंदी जफ़ा कब तक
यह आज़माईश सब्र गुरेज़ पा कब तक
क़सम तुम्हारी बहुत ग़म उठा चुका हूँ मैं
ग़लत था दावा सब्र ओ शकीब आ जाओ
क़रार ख़ातिर बे ताब थक गया हूँ मैं
(इंतज़ार, नज़्म)
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फिर कोई आया दिल ज़ार ! नहीं कोई नहीं
राह रौ होगा, कहीं और चला जाएगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़बार
लडख़ड़ाने लगे इवानो में खवाबीदः चराग़
सो गयी रास्ता तक तक के हर इक राह गुज़र
अजनबी ख़ाक ने धुंदला दिए क़दमों के चराग़
गुल करो शमे, बढ़ा दो मै ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे ख़्वाब किवाड़ों को मुक़्क़फ़िल कर लो
अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आएगा
(तन्हाई, नज़्म)
फिलहक़ीक़त इंफरादियत,ज़ेहनी रूझान, सोज़ ओ गुदाज़,शिद्दत ए अहसास, क़ल्बी वारदात और रूमानी मौज़ूआत मिल कर फैज़ के कलाम में ज़िन्दगी आमेज़ रंग भर देते| फैज़ अपनी रूमानी नज़्मों और ग़ज़लों में इन्तहाई अहसासात के पैकर नज़र आते हैं जितना कि इंक़लाबी मौज़ूआत की नज़्मों और ग़ज़लों में| लेकिन मरहला ओ मुक़ाम पर वो अपने कलाम में खूबसूरत तरकीब और अलफ़ाज़ की हसीं तरतीब से काम लेते हैं| नुदरत और जिद्दत का दामन हाथ में होता है| नादिर इशारों और कनयों पर भी उबूर रखते हैं| क़ाबिल ए तहसीन बात तो यह है की पुर माने और दिलकश अलफ़ाज़ की खूबसूरत तरतीब से नज़्मों में कुछ ऐसा इंफरादि हुस्न और हम आहंगी पैदा हो जाती है की कलाम की मक़बूलियत, अहमियत, इफ़ादियत और अहसास की शिद्दत का ख़ासा अज़ाफा हो जाता है| चाँद मुन्तख़ब नज़्मों में फैज़ की लफ़्ज़ी सन्नाई से, शिद्दत ए अहसास के पुर तासीर इज़हार का अंदाज़ा बख़ूबी लगाया जा सकता है|
मोहब्बत की दुनिया पे शाम आ चुकी है
सियाह पोश हैं ज़िन्दगी की क़बाएँ
तग़ाफ़ुल के आग़ोश में (खुदा वो वक़्त न लाये)
ज़िन्दगी किसी मुफ़लिस की क़बा, हर घड़ी दर्द के पेवंद लगे जाते हैं,अरसा ए दहर की झुलसी हुई वीरानी, अजनबी हाथों का बे नाम गिरान बार सितम,हुस्न से लिपटी हुई आलम की गोद, चांदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द, जिस्म की मायूस पुकार (नज़्म, चंद रोज़ और मेरी जान)
फैज़ के अंदर रूमानी और इश्क़िया अहसासात की शिद्दत कभी काम नहीं हुई वो बराबर नज़्मों और ग़ज़लों में अहसासात की शिद्दत को असर अंगेज़ी के साथ बयां करने के लिए अलफ़ाज़ की खूबसूरत और बे मिस्ल तरतीब से काम लेते हैं| देखा जाए तो फैज़ की सखी लतीफ़ इशारों और दिलआवेज़ कन्यायों में रक़्स काना महसूस होती है| ऐसा इस लिए कि उन तमाम हालात के पस ए मंज़र मे हुस्न लतीफ़ और अहसास ए जमाल शिद्दत से मोजज़न होती है| फैज़ की इंफारदियत उन के शिद्दत ए अहसास से इबारत है| शायद इसी बिना पर फैज़ के तसव्वुर में लज़्ज़त आमेज़ रंग ओ आहंग पैदा हुआ है|
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