फैज़ अपनी इश्क़िया कविताओं और ग़ज़लों में उतना ही अपनी भावनाओं के पैकर दिखाई देते हैं जितना कि इंक़लाबी विषय की कविताओं और ग़ज़लों में| लेकिन मरहला ओ मुक़ाम पर वह अपने कलाम में खूबसूरत तरकीब और शब्दों के खूबसूरत चयन से काम लेते हैं| संतोष जनक बात तो यह है कि मतलब से भरपूर सुंदर शब्दों को जिस सुंदरता के साथ पंक्तियों में सजाते हैं उससे बिलकुल ही अलग ख़ूबसूरती और आपसी ताल मेल पैदा हो जाती है और इन्ही विशेषताओं से फैज़ की कविताओं और ग़ज़लों की लोकप्रियता बढ़ती है| फैज़ की इन्ही विशेषताओं का अंदाज़ा इनकी कुछ चयनित कविताओं से लगाया जा सकता है| मोहब्बत की दुनियाँ पे शाम आ चुकी है स्याह पोश हैं ज़िन्दगी की क़बाएँ ...