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फैज़ अपनी इश्क़िया कविताओं और ग़ज़लों में उतना ही अपनी भावनाओं के पैकर दिखाई देते हैं जितना कि इंक़लाबी विषय की कविताओं और ग़ज़लों में| लेकिन मरहला ओ मुक़ाम पर वह अपने कलाम में खूबसूरत तरकीब और शब्दों के खूबसूरत चयन से काम लेते हैं| संतोष जनक बात तो यह है कि मतलब से भरपूर सुंदर शब्दों को जिस सुंदरता के साथ पंक्तियों में सजाते  हैं उससे बिलकुल ही अलग ख़ूबसूरती और आपसी ताल मेल पैदा हो जाती है और इन्ही विशेषताओं से फैज़ की कविताओं और ग़ज़लों की लोकप्रियता  बढ़ती  है| फैज़ की इन्ही विशेषताओं का अंदाज़ा इनकी कुछ चयनित कविताओं से लगाया जा सकता है|                                   मोहब्बत की दुनियाँ पे शाम आ चुकी है                                                             स्याह पोश हैं ज़िन्दगी की क़बाएँ               ...
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             गुज़र रहे हैं शब् ओ रोज़  नहीं आतीं                                                 रियाज़ ए ज़ीस्त है आज़ुर्दा ए बहार अभी                                                  मेरे ख्याल  की दुनिया है सोगवार अभी                                                  जो हसरतें तेरे ग़म की कफ़ील हैं प्यारी                                                  अभी तलक मेरी तन्हाईयों में बस्ती हैं                  ...

URDU SHAYARI

हिंदी में पेश करने की ज़रुरत क्यों ज़ुबान किसी मज़हब तक महदूद नहीं होती है और न ही जुबां का तालुक किसी मज़हब ए ख़ास से होता है आम तौर पर उर्दू और हिंदी दोनों काफी मिलती जुलती जुबां है लेकिन जो एक अड़चन है वो सिर्फ दोनों की लिपि है एक बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जो उर्दू ज़ुबान को काफी पसंद तो करते हैं लेकिन लिपि जुदा होने की वजह से पढ़ नहीं पाते हैं मैंने इसी अड़चन को दूर करने की एक कोशिश की है ताकि इसका लुत्फ़ सभी उठा सकें|   फैज़ की शायरी   फैज़ की शायरी किसी तआरुफ  की मोहताज नहीं है , ये वो शायर हैं जिन्होंने  शायरी की दुनिया में एक बड़ा बदलाव लाया कभी फैज़ ने क़लम उठाया तो इश्क़ की हक़ीक़ी कैफियत बयां कर डाली कभी क़लम उठाया तो इंक़लाब बरपा कर दिया | गो  के हर रंग नज़र आता  है इनकी शायरी में फैज़ के नजरिया ए फने ज़ोलीदह शायरी और मतनु ज़ेहनी साख़्त का तजज़िआ  एक पेचीदा  मोज़ूअ  है| फैज़ की शायरी इंफरादि रंग ओ आहंग नदरत वजदत्त का बेनज़ीर मज़हर है फैज़ की ज़ेहनी कमाश और इफ्ताद ए तबअ के पसमंज़र में बीसवीं सदी के अर्बाअ अव्वल अ...